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7/1/2017

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BHAKTI PADARTH

भक्ति पदारथ तब मिलै, जब गुरु होय सहाय।

प्रेम प्रीति की भक्ति जो, पूरण भाग मिलाय॥
गुरु को सिर राखिये, चलिये आज्ञा माहिं।

कहैं कबीर ता दास को, तीन लोक भय नहिं॥
गुरुमुख गुरु चितवत रहे, जैसे मणिहिं भुवंग।

कहैं कबीर बिसरें नहीं, यह गुरुमुख को अंग॥
कबीर ते नर अंध है, गुरु को कहते और।

हरि के रूठे ठौर है, गुरु रूठे नहिं ठौर॥
भक्ति-भक्ति सब कोई कहै, भक्ति न जाने भेद।

पूरण भक्ति जब मिलै, कृपा करे गुरुदेव॥
गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान।

गुरु बिन सब निष्फल गया, पूछौ वेद पुरान॥
कबीर गुरु की भक्ति बिन, धिक जीवन संसार।

धुवाँ का सा धौरहरा, बिनसत लगै न बार॥
गुरु मुरति आगे खडी, दुतिया भेद कछु नाहि।

उन्ही कूं परनाम करि, सकल तिमिर मिटी जाहिं॥
गुरु की आज्ञा आवै, गुरु की आज्ञा जाय।

कहैं कबीर सो संत हैं,आवागमन नशाय॥

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શ્રી કૃષ્ણ ત્વં ગતીર મમઃ

ॐ क्लीं हरविराय भू: शंकर लक्ष्मी कुरु कुरु स्वाहा ॐ क्लीं श्रीं हरविराय मन्दराचल र्वासिने नम : शंकराय सर्वमनोकामनाय सिध्ये, सर्वजन वसमानय कुरु करू ह्रीं क्लीं फट स्वाहा