भक्ति पदारथ तब मिलै, जब गुरु होय सहाय।
प्रेम प्रीति की भक्ति जो, पूरण भाग मिलाय॥
प्रेम प्रीति की भक्ति जो, पूरण भाग मिलाय॥
गुरु को सिर राखिये, चलिये आज्ञा माहिं।
कहैं कबीर ता दास को, तीन लोक भय नहिं॥
कहैं कबीर ता दास को, तीन लोक भय नहिं॥
गुरुमुख गुरु चितवत रहे, जैसे मणिहिं भुवंग।
कहैं कबीर बिसरें नहीं, यह गुरुमुख को अंग॥
कहैं कबीर बिसरें नहीं, यह गुरुमुख को अंग॥
कबीर ते नर अंध है, गुरु को कहते और।
हरि के रूठे ठौर है, गुरु रूठे नहिं ठौर॥
हरि के रूठे ठौर है, गुरु रूठे नहिं ठौर॥
भक्ति-भक्ति सब कोई कहै, भक्ति न जाने भेद।
पूरण भक्ति जब मिलै, कृपा करे गुरुदेव॥
पूरण भक्ति जब मिलै, कृपा करे गुरुदेव॥
गुरु बिन माला फेरते, गुरु बिन देते दान।
गुरु बिन सब निष्फल गया, पूछौ वेद पुरान॥
गुरु बिन सब निष्फल गया, पूछौ वेद पुरान॥
कबीर गुरु की भक्ति बिन, धिक जीवन संसार।
धुवाँ का सा धौरहरा, बिनसत लगै न बार॥
धुवाँ का सा धौरहरा, बिनसत लगै न बार॥
गुरु मुरति आगे खडी, दुतिया भेद कछु नाहि।
उन्ही कूं परनाम करि, सकल तिमिर मिटी जाहिं॥
उन्ही कूं परनाम करि, सकल तिमिर मिटी जाहिं॥
गुरु की आज्ञा आवै, गुरु की आज्ञा जाय।
कहैं कबीर सो संत हैं,आवागमन नशाय॥
कहैं कबीर सो संत हैं,आवागमन नशाय॥
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